उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में आयी भीषण आपदा ने कई हिस्सों के भूगोल को ही बदल डाला है I इस त्रासदी से अकाल मृत्यु को प्राप्त करनेवालों के सही आंकड़े आने अभी बांकी हैं Iआपदा की पूर्व चेतावनी के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम को और अधिक बेहतर किये जाने पर चर्चा हो रही है !आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की आज से हजारों वर्ष पूर्व रचित चरक संहिता में इस प्रकार की आपदा के आने के कारणों पर विस्तृत चर्चा की गयी थी Iचरक संहिता के विमान स्थान "जनपदोंध्वंसनीय विमान" अध्याय तीन में इन आपदाओं को पहले ही समझने और इनसे निपटने के तरीकों को विस्तार से उद्धृत किया गया हैI आचार्यों के अनुसार किसी भी जनपद ( क्षेत्र ) में वायु,जल,देश एवं काल भाव स्वरुप में स्थित होते हैं और इनके विकृत होने से समूचे जनपद में आपदा आने की संभावना होती है Iइसी अध्याय में ऋषि आत्रेय महर्षि अग्निवेश से कहते हैं कि जब मानवप्रज्ञापराध के कारण धर्म को छोड़कर अधर्म को बढाता है ,तब इस प्रकार की आपदा समस्त जनपद को लील जाती है Iमानव द्वारा जानबूझकर-अनजाने में- धैर्य न होने से या भूलवश किये गए अपराध इस श्रेणी में आते हैं Iइतना ही नहीं आचार्य अग्निवेश ने कहा है की ऐसी स्थितियों में भगवान् भी साथ छोड़ देते हैं (जैसा की केदारनाथ खंड में साफ़ देखा जा सकता है)..ऋतुएं विकृत हो जाती हैं ...अतिवृष्टि या अनावृष्टि की स्थिति पैदा हो जाती है ! देवताओं की भूमि कहे जानेवाले हिमालयी क्षेत्र में आयी जनपदोध्वंसनीय आपदा हमें स्वयं द्वारा किये गए इन अपराधों की चेतावनी दे रही है! हमने अपने निहित स्वार्थ के लिए इन पवित्र क्षेत्रों के वायु,जल,देश एवं काल को दूषित करने में अपनी भागीदारी अर्पित की है जिसके परिणाम आज सामने हैं ! इससे आर्टिकल को दैनिक भास्कर जीवन मन्त्र पर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/FM-HL-yoga-the-major-reason-behind-the-destruction-of-uttarakhand-4301006-NOR.html
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